Saturday, 28 November 2015

संतान गोपाल मन्त्र :

सन्तान गोपाल मंत्र:
सन्तान गोपाल मंत्र दूर करेगा हर संतान बाधा...........
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.शास्त्रों में संतान कामना को पूरा करने के ऐसे ही उपाय बताए
गए हैं, जिनसे बिना किसी ज्यादा परेशानी या आर्थिक बोझ
के मनचाही खुशियां मिलती हैं। यह उपाय है संतान गोपाल
मन्त्र का जप। स्वस्थ्य, सुंदर संतान खासतौर पर पुत्र प्राप्ति के
लिए यह मंत्र पति-पत्नी दोनों के द्वारा किया जाना बेहतर
नतीजे देता है। संतान गोपाल मंत्र: देवकीसुत गोविन्द वासुदेव
जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।। संतान गोपाल मंत्र
जप की विधि -पति-पत्नी दोनों सुबह स्नान कर पूरी पवित्रता
के साथ उपरोक्त मंत्र का जप तुलसी की माला से करें।इसके लिए
घर के देवालय में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र की
चन्दन, अक्षत, फूल, तुलसी दल और माखन का भोग लगाकर घी के
दीप व कर्पूर से आरती करें।बालकृष्ण की मूर्ति विशेष रूप से श्रेष्ठ
मानी जाती है।भगवान की पूजा के बाद या आरती के पहले
उपरोक्त संतान गोपाल मंत्र का जप करें।मंत्र जप के बाद भगवान
से समर्पित भाव से निरोग, दीर्घजीवी, अच्छे चरित्रवाला,
सेहतमंद पुत्र की कामना करें।यह मंत्र जप पति या पत्नी अकेले
भी कर सकते हैं।धार्मिक मान्यताओं में इस मंत्र की 55 माला
या यथाशक्ति जप के एक माह में चमत्कारिक फल मिलते हैं।
Devakisutam Govindam Vasudevam JagatpatimDehim-
Tanayam Krishna-twa-maham Saranagatah.
Remarks: Meditate on Lord Krishna rising from the sea in a
chariot with Arjuna and bringing a baby son (to us). It is
best to start this mantra in a Holy place near the sea,
preferably Puri as the mantra specifically refus to the
Jagannath Rupa (form) with the word “Jagatpatim”. One
lakh Japa followed by a proper pooja as described above
gives an illustrious and dutiful son.
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि
मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।=======================
Om Shreeng Hreeng Kleeng Glaung Devakisut Govind
Vasudev Jagatpate Dehi Me Tanayam Krishn Tvaamaham
Sharanam Gatah ।
जीवनमें सफलता प्राप्त करने के लिए एक अच्छे संतान की
आवश्यकता होती हैं। परन्तु-कुछ लोग संतान विहीन होते हैं और
संतान की प्राप्ति के लिए अनेक प्रयास करते हैं। ऐसी स्थिति
में संतान प्राप्ति हेतु यह यंत्र अत्यन्त चमत्कारिक है। इस यंत्र की
प्रतिष्ठा पूजा करने से मनोवांछित संतान की प्राप्ति होती
है। और वह दीर्घायु और गुणवान होता है।
संतान गोपाल यंत्र की साधना अत्यन्त प्रसिद्ध है जिन्हें संतान
नहीं उत्पन्न होती है वे बालकृष्ण की मूर्ति के साथ संतान
गोपाल यंत्र स्थापित करते हैं तथा उनके सामने संतानगोपाल
स्तोत्र का पाठ करते हैं। कुछ लोग ’पुत्रोष्टि यज्ञ’ करते हैं
पुत्रेष्टि यज्ञ एवं संतान गोपाल यंत्र के द्वारा अवश्य ही संतान
की प्राप्ति होती है।यंत्र का उपयोगसंतान गोपाल यंत्र को
गुरुपुष्य नक्षत्र में पूजन एवं प्रतिष्ठा करने के पश्चात् संतान
गोपाल स्त्रोत्र का पाठी करने से शीघ्र ही गृह में कुलीन एवं
अच्छे गुणों से युक्त संतान की उत्पत्ति होती है तथा माता
पिता की सेवा में ऐसी संतानें हमेशा तत्पर रहती हैं।संतान
गोपाल यंत्र को गोशाला में प्रतिष्ठित करके गोपालकृष्ण का
मंत्र का जप श्रद्धापूर्वक करने से वध्या को भी शीघ्र ही
पुत्ररत्न उत्पन्न होता है तथा सभी गुणों से सम्पन्न होता है।
मनुष्य धन-सम्पत्ति बढ़ाने में जितना ध्यान देता है उतना संतान
पैदा करने में नहीं देता यदि शास्त्रोक्त रीति से शुभ मुहूर्त में
गर्भाधान कर संतानप्राप्ति की जाय तो वह परिवार व देश का
नाम रोशन करनेवाली सिद्ध होगी उत्त्म संतानप्राप्ति के
लिए सर्वप्रथम पति-पत्नी का तन-मन स्वस्थ होना चाहिए वर्ष
में केवल एक ही बार संतानोत्पत्ति हेतु समागम करना हितकारी
हैगर्भाधान के लिए समय:ॠतुकाल की उत्तरोत्तर रात्रियों में
गर्भाधान श्रेष्ठ है लेकिन 11वीं व 13वीं रात्रि वर्जित हैयदि
पुत्र की इच्छा हो तो पत्नी को ॠतुकाल की 8, 10, 12, 14 व
16वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद कर
समागम करना चाहिएयदि पुत्री की इच्छा हो तो ॠतुकाल
की 5, 7, 9 या 15वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ
मुहूर्त पसंद करना चाहिएकृष्णपक्ष के दिनों में गर्भ रहे तो पुत्र व
शुक्लपक्ष में गर्भ रहे तो पुत्री पैदा होती हैरजोदर्शन दिन को
हो तो वह प्रथम दिन गिनना चाहिए सूर्यास्त के बाद हो तो
सूर्यास्त से सूर्योदय तक के समय के तीन समान भाग कर प्रथम दो
भागों में हुआ हो तो उसी दिन को प्रथम दिन गिनना चाहिए
रात्रि के तीसरे भाग में रजोदर्शन हुआ हो तो दूसरे दिन को
प्रथम दिन गिनना चाहिएनिषिद्ध रात्रियाँ: पूर्णिमा,
अमावस्या, प्रतिपदा, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, सूर्यग्रहण,
चंद्रग्रहण, ऊत्तरायण, जन्माष्टमी, रामनवमी, होली,
शिवरात्रि, नवरात्रि आदि पर्वों की रात्रि, श्राद्ध के दिन,
चतुर्मास, प्रदोषकाल, क्षयतिथि (दो तिथियों का समन्वय
काल) एवं मासिक धर्म के चार दिन समागम नहीं चाहिए
शास्त्रवर्णित मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करना
चाहिएज्यातिष शास्त्रो के आधर पर देखा जाये तो हमे
ज्ञातहोता है संतान के सम्बन्ध्ा में क्या करना चाहिए हमारे
पुर्वजो ने जो खोज कि है यदि उन्हे अपनाया जाये तो सफलता
अवशय प्राप्त होती हैं ज्यातिष शास्त्रो के कुछ सूत्र माता
पिता की मृत्युतिथि, स्वयं की जन्मतिथि, नक्षत्रों की संधि
(दो नक्षत्रों के बीच का समय) तथा अश्विनी, रेवती, भरणी,
मघा, मूल इन नक्षत्रों में समागम वर्जित हैदिन में समागम करने से
आयु व बल का बहुत ह्रास होता है गर्भाधान हेतु सप्ताह के 7
दिनों की रात्रियों के शुभ समय इस प्रकार हैं :रवि >> 8 से 9 >>
1.30 से 5सोम >> 10.30 se 12 >> 1.30 से 4मंगल >> 7.30 से 9
>> 10.30 से 1.30बुध >> 7.30 से 10 >> 3 से 4.30गुरु >> 12 से
1.30 >> 3 से 4शुक्र >> 9 से 10.30 >> 12 से 3.30शनि >> 9 से
12रात्रि के शुभ समय में से भी प्रथम 14 व अंतिम 15 मिनट का
त्याग करके बीच का समय गर्भाधान के लिए निश्चित
करेंगर्भधारण के पूर्व कर्तव्यरात्रि तथा समय कम-से-कम तीन
दिन पूर्व निश्चित कर लेना चाहिए निश्चित रात्रि में शाम
होने से पूर्व पति-पत्नी को स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर सदगुरु
व इष्टदेवता की पूजा करनी चाहिए संभव हो तो हवन करना
चाहिएगर्भाधान एक प्रकार का यज्ञ है इसलिए इस सतत यज्ञ
की भावना रखनी चाहिए, विलास की दृष्टि नहीं रखनी
चाहिएपति-पत्नी दोंनो को अपनी चित्तवृत्तियाँ परमात्मा
में स्थिर करनी चाहिए व उत्तम आत्माओं को प्रार्थना करते हुए
उनका आह्वान करना चाहिए :’हे ब्रह्माण्ड में विचरण कर रहीं
सूक्ष्म रूपधारी पवित्र आत्माओं ! हम दोंनो आपको प्रार्थना
कर रहे हैं कि हमारे यहाँ जन्म धारण करके हमें कृतार्थ करें हम
दोंनो अपने शरीर, मन, प्राण व बुद्धि को आपके योग्य बानायेंगे
’पुरुष दायें पैर से स्त्री से पहले शय्या पर आरोहण करे और स्त्री
बायें पैर से पति के दक्षिण पार्श्व में श्य्या पर चढ़े तत्पश्चात
शय्या पर निम्नलिखित मंत्र पढ़ना चाहिए :अहिरसि आयुरसि
सर्वतः प्रतिष्ठासि धाता त्वां दधातु विधाता त्वां दधातु
ब्रह्मवर्चसा भवेतिब्रह्मा बृहस्पतिर्विष्णुः सोम
सूर्यस्तथाऽश्विनौ भगोऽथ मित्रावरुणौ वीरं ददतु मे सुतम्‘हे
गर्भ ! तुम सूर्य के समान हो तुम मेरी आयु हो, तुम सब प्रकार से
मेरी प्रतिष्ठा हो धाता (सबके पोषक ईश्वर) तुम्हारी रक्षा
करें, विधाता (विश्व के निर्माता ब्रह्मा) तुम्हारी रक्षा करें
तुम ब्रह्मतेज से युक्त होओब्रह्मा, बृहस्पति, विष्णु, सोम, सूर्य,
अश्विनीकुमार और मित्रावरुण जो दिव्य शक्तिरूप हैं, वे मुझे
वीर पुत्र प्रदान करेंचरक संहिता, शारीरस्थान : 8.8दोंनो गर्भ
विषय में मन लगाकर रहें ऐसा करने से तीनों दोष अपने-अपने
स्थानों में रहने से स्त्री बीज ग्रहण करती है विधिपूर्वक
गर्भधारण करने से इच्छानुकूल फल प्राप्त होता है ।

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